क्या हुआ और क्या हो सकता है
क्या हुआ और क्या हो सकता है ?
—-इससे ऊपर उठना ही जीवन है !
पैसा -शोहरत हासिल कर के भी
कोई बड़ा नहीं बन पाया !
और कोई कल क्या था
— इसकी चिंता
कोई क्यों करे ?
चिंता ही तो नींद उड़ा देती है !
और एक मुस्कुराहट
हमें सब भूला देती है !
कल हम क्या थे ,
और कल क्या हो जाएँगे ?
इसकी चिंता में डूब कर
कभी हम
चैन से एक निवाला भी न निगल पाएँगे !
ईशवर नियंता है
वहीं सब करता है
—-यही सोच ही सबसे बड़ी सोच है !
मैंने जो किया और मैंने जो पाया
वह यदि मेरे बस में होता
तो शायद मैं जो हूँ
वह कभी न होता !
हो सकता है मैं कोई सितारा होता ,
दुनिया का हर बाशिंदा मेरी झलक को तरसता !
या फिर मैं किसी काल कोठरी में पड़ा
सड़ रहा होता !
इसका मापदंड
न किसी क़ानून में है
और न ही मेरे -तुम्हारे हाथ में। !
बस जो दूसरों को देख कर
दुखी रहता है ,
वहीं लिप्त है ,
वहीं दूर है जीवन की सच्चाई से !
और वही अपनी तराज़ू हाथ में लिए
बंदर बाँट को लगा रहता है !
या फिर दूसरों की ज़िन्दगी से निष्कर्ष निकालता रहता है !
जब समझ आए
उसी को सवेरा मानें
यही जीवन का सार है , मेरे दोस्त !
—-अश्विनी कपूर
जब समझ आए उसी को सवेरा मानें यही जीवन का सार है , मेरे दोस्त ! —-अश्विनी कपूर!