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Ashwani Kapoor

राजरानी

 

सुबह-सवेरे नींद खुलती है जब, तो मन कभी-कभी तो बहुत खुश होता है। बहुत ही ज्यादा खुश होता है। और कभी बहुत बेचैन, उदास, कुछ न करने के लिए हो जैसे, जैसे मन में कोई उत्साह ही नहीं है। जैसे जीवन बिल्कुल नीरस हो गया है। वास्तव में यह सब नींद में, मन की तरंगों में, मन के भावों से निकल कर जो नये-नये स्वप्न गढ़े जाते है उन्ही स्वप्नों का परिणाम होता है। सुबह उठो, तो एकाएक लगता है सामने नया जीवन है। सामने उत्साह खड़ा नाच रहा है। उठो-उठो आगे बढ़ों आज मुझे ये करना है। और कभी-कभी पूरा बदन दुःख रहा होता है। कुछ भी नहीं करना। जैसे जिन्दगी है ही क्या ? इस जिन्दगी में क्या किया। अरे ...... ! यह सब हमारे अपने मानसिक भावों का प्रतीक है। जैसे-जैसे, नये-नये आयाम मिलते हैं, जैसे-जैसे, नये-नये आइडियास मिलते है। वैसे-वैसे मन एक नयी स्फूर्ति पाता है। और जब कुछ काम नहीं होता या कुछ भाव नहीं होते तो मन निठठल्ला, उदास, कुछ न करने को, बस एक कोने में पड़े रहने को चाहता है। खैर, सुबह उठो यह भाव तो एक तरफ, दूसरी तरफ कोई न कोई याद भी आता है। अचानक बरसों पहले का कोई चेहरा याद हो आता है। कभी अचानक, कल ही मिली हुई कोई बात याद आती है। वास्तव में जो बात जितनी ज्यादा आवश्यक होती है। उतनी जरूरत महसूस करता है मन, उसे बार-बार याद करने को और जब कभी अचानक मन भाग कर पीछे पहुंच जाता है। मीलों दूर, सालों दूर, कितने लाईट इयरस एकाएक कभी बचपन का चेहरा याद आता है। कभी जवानी का, कभी किसी का बुढ़ापा, और आज, ... आज सुबह-सुबह उठा तो एकाएक याद आया एक शब्द... एक नाम ‘हान्डा’। हान्डा …….. ! हान्डा एक जाति है पंजाब की। लेकिन मुझे वो जाति याद नहीं आई। हान्डा तो मेरे मस्तिष्क में सहेज के रखा हुआ एक शब्द और उस शब्द के पीछे एक चेहरा, और उस चेहरे के पीछे छिपी ढेर सी कहानियां। हान्डा से याद आया रमेश हान्डा। आज वह जानी-मानी हस्ती होगी मैं नहीं जानता। सुना था किसी से वह करोड़पति हैं। हो सकता है करोड़ से भी ऊपर अरबपति ! एकाएक इतनी बात सोच कर मैं मुस्कुरा पड़ा ! वाह ....... ! क्या नियति है। जिस जननी ने जन्म दिया उसको, जिसे मां कहता था वो बचपन में, वो मां, ... वो मां कहां है ? कहां है उसकी मां ? कौन थी वह ? एक कहानी। पूरी कहानी। एक फिल्म की तरह मेरे मस्तिष्क पर छा गयी। अरे ......... अरे ........... अरे यह तो उस राजरानी का बेटा है ! ओ माई गॉड ! ओ हो राजरानी ........ राजरानी कौन थी ? राजरानी कौन ? ओ गॉड ! उसकी मां ! अरे, एकाएक मैं बचपन में लौट गया। मुझे बाऊजी से सुनी बातें याद आने लगी। उन्होंने ही सुनाई थी मुझे एक कहानी। एक था राजा, एक थी रानी, राजा कई सारे बेटों का बाप था। पर उस राजा को बेटों की परवरिश के साथ-साथ इस बात का बहुत घमंड था ............. बहुत घमंड था, उसे कि वह बहुत अमीर है। सबकुछ है उसके पास। दौलत उसके कदम चूमती है। शौहरत उसके कदम चूमती है। और ......... और ऐसे में उसका मन भटका। वह अपनी रानी के अलवा कई सारी पटरानियों के साथ स्वप्न महलों में घूमने लगा। तब उसे याद नही आया, कि जैसा बाप, वैसे ही संस्कार बच्चों को मिलते है। बाप ने तो दो-चार पटरानियां रख छोड़ी थी। और बेटे, यह सब देखकर अपने मन में सहेज कर रख लेते थे। यही संस्कार कि पैसा है, शोहरत है, तो मौज-मस्ती करने को कोई नहीं रोक सकता। और उस मौज-मस्ती में सबसे पहले बेटा जवान हुआ। रामसिंह ! रामसिंह ! नाम बहुत अच्छा दिया था। राम भी और सिंह भी, और वह रामसिंह राज-काज में हाथ बटाने लगा अपने पिता का। बड़ी हुआ तो पिता ने उसकी भी धूम-धाम से शादी कर दी और रामसिंह को तब लगा कि ब्याह के लाई हुई दूल्हन तो घूंघट की ओट में घर में ही रहनी चाहिए। घर की दूल्हन रानी का खिताब पाएगी। वह उसके दिनभर के कार्य-कलापों के बीच में कोई मायने नहीं रखती।

जब समझ आए उसी को सवेरा मानें यही जीवन का सार है , मेरे दोस्त ! —-अश्विनी कपूर!